बहुत समय पहले, हिरण्यकशिपु नामक एक दैत्य ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे एक वरदान दिया। हिरण्यकशिपु ने वरदान में यह मांगा कि उसे ना तो दिन में मारा जा सके, ना ही रात में; ना घर के अंदर, ना बाहर; ना धरती पर, ना आकाश में; ना किसी मनुष्य द्वारा, ना किसी पशु द्वारा; ना किसी अस्त्र से, ना किसी शस्त्र से। हिरण्यकशिपु ने सोचा कि इस प्रकार वह अमर हो गया है और उसने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
हिरण्यकशिपु का एक पुत्र था, प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकशिपु को यह स्वीकार नहीं था कि उसका पुत्र उसके शत्रु की भक्ति करे। उसने प्रह्लाद को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन प्रह्लाद ने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी। गुस्से में आकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन प्रत्येक बार प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच जाता।
एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा, "तुम्हारा भगवान कहां है?" प्रह्लाद ने उत्तर दिया, "वह हर जगह है।" क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने एक खंभे की ओर इशारा करके कहा, "क्या तुम्हारा भगवान इस खंभे में भी है?" प्रह्लाद ने कहा, "हां, वह इस खंभे में भी है।" तब हिरण्यकशिपु ने खंभे को ताकत से मारा।
तभी चमत्कार हुआ और खंभा फट गया, और उसमें से भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु को उठा लिया। यह संध्या का समय था, न दिन था न रात। वे उसे द्वार की चौखट पर ले गए, न अंदर थे न बाहर। उन्होंने हिरण्यकशिपु को अपनी जाँघ पर रखा, न धरती पर थे न आकाश में। और फिर उन्होंने अपने नखों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से।
इस प्रकार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की और धरती को बुराई से मुक्त किया। प्रह्लाद की अडिग भक्ति और भगवान विष्णु की कृपा ने सभी को यह सिखाया कि भक्ति में शक्ति है और भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
इस कथा के माध्यम से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि अहंकार और क्रूरता का अंत समय के साथ निश्चित है, जबकि भक्ति और विश्वास की शक्ति अजेय है। नरसिंह अवतार की कथा आज भी हमें अध्यात्मिक शक्ति, भक्ति, और ईश्वरीय प्रेम का मार्ग दिखाती है।
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