एक समय की बात है लालपुर नाम के एक गांव में सुखदेव नाम का दरिद्र ब्राह्मण अपनी पत्नी और अपने एक बेटे के साथ रहता था। बहुत गरीबी में वो जैसे तैसे अपना जीवन यापन कर रहा था। सुखदेव भगवान शिव को बहुत मानता था। मन ही मन हमेशा उनका नाम जपता रहता। तो वहीं ब्राह्मण की पत्नी बहुत ही ज्यादा धूर्त और लालची थी। वो हमेशा किसी न किसी बात को लेकर पति से झगड़ती रहती।
ब्राह्मण की पत्नी ब्राह्मण से कहा की इस गांव में तो हमें कोई भिक्षा भी नहीं देता। आप दूसरे गांव में जाकर भिक्षा ही क्यों नहीं मांगते। इस तरह दरिद्रता में हम कब तक जिएंगे।
ब्राह्मण ने उत्तर दिया की - मैं अपनी तरफ से कोशिश तो करता ही हूं। अब अगर मेरी किस्मत में ही सुख नहीं है तो मैं क्या करूं।
ब्राह्मण की पत्नी बोली आपकी बातें खाली बड़ी-बड़ी निकलती हैं। करने के नाम पर कुछ नहीं। घर में बैठकर क्या करेंगे। जाओ बाहर और कुछ कमा कर लाओ।
रोज-रोज ब्राह्मणी के झगड़े और तानों से तंग आकर एक दिन वो अपना पोथी पतरा उठाकर घर से दूसरे गांव चला गया। उस गांव में जाकर भगवत कथा सुनाने का प्रयास किया लेकिन कोई उससे कथा सुनने को तैयार था। ऐसे में दुखी होकर वो वापस अपने गांव लौटने लगा। रास्ते में एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर विश्राम करने लगा। उस विशाल पीपल के पेड़ की जड़ में एक काला नाग रहता था ।
ब्राह्मण मन ही मन सोचता है "हे भोलेनाथ , ये आपकी कैसी माया है। मैं आपकी कथा सुना कर अपना घर संसार चलाना चाहता हूं, लेकिन मुझसे तो कोई कथा सुनने को भी तैयार नहीं है। मैं क्या करूं प्रभु, अब तो आप ही मुझे कोई रास्ता दिखाओ। हे प्रभु ,मैं यहीं इस पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर कथा कहता हूं और आप ही मेरी कथा को सुनो। क्योंकि और तो कोई सुनता नहीं है। "
ये सोचकर ब्राह्मण वहीं अपना पोथी पत्रा निकालता है और विधि पूर्वक कथा कहना प्रारंभ करता है। ऐसे में पेड़ की जड़ में बैठा वो नाग कथा सुनने लगता है। पूरी कथा को वो बहुत ध्यान से सुनता है। जब कथा समाप्त होती है तो बाहर आकर ब्राह्मण को एक सोने का सिक्का दक्षिणा में देता है और फिर कहता है
नाग ब्राह्मण से कहता है की तुम रोज यहां आकर कथा कहा करो। तुम्हें और कहीं जाने की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें रोज एक सोने का सिक्का दक्षिणा में दूंगा। लेकिन ये बात तुम किसी और से मत कहना।
ब्राह्मण उसकी बात मान लेता है। नाग के जाने के बाद वो भगवान शिव को धन्यवाद देते हुए कहता है, कि प्रभु आपने तो मेरी जिंदगी ही बदल दी। मैंने आपसे थोड़ा मांगा, आपने तो मेरी झोली भर दी। आपकी महिमा अपरंपार है प्रभु। अब वो ब्राह्मण रोज सुबह सवेरे वहां नहा धोकर आ जाता और उस नाग देवता को कथा सुनाता। और रोज वो एक सोने के सिक्के लेकर घर जाता। बहुत जल्द ही वो दरिद्र से अमीर बन गया। अब उसके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। पूरे गांव के लोग उसकी प्रगति को देख कर आश्चर्यचकित थे. लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल पैदा हो रहे थे। बहुत लोगों के दिमाग में तो ये भी चल रहा था कि जरूर ये ब्राह्मण कोई गलत काम कर रहा है, जिसकी वजह से वो इतनी जल्दी इतना धनवान हो गया है। अब लोग ब्राह्मण की पत्नी से सवाल करने लगे
पड़ोसन ने पुछा की तुम्हारे पति के पास इतना धन कहां से आ गया है? आखिर ऐसा कौन सा काम करने लगा है वो?
ब्राह्मण की पत्नी बोली वो दूसरे जगहों पर जाकर कथा सुनाते हैं। उसी से उन्हें जो धन मिलता है वो ले आते हैं।
पड़ोसन ने आश्चर्य से कहा कथा सुनाने के लिए इतना धन भला कौन देता है?
अब तो उसकी पत्नी के मन में भी कई सवाल उठने लगे, तो वो पति से पूछने लगी कि, इतना धन आपको कौन देता है। लेकिन ब्राह्मण से तो नाग देवता ने किसी को कुछ बताने से मना किया था, इसलिए वो कुछ नहीं बताता। लेकिन उसकी पत्नी तो उसके पीछे ही पड़ गई। वो हर ज़िद करने लगी जिससे ब्राह्मण सोने के सिक्के के बारे में उसे बता दे, कि वो कहां से आता है। ऐसे में एक दिन ब्राह्मण विवश हो गया और उसने धीरे से पत्नी को नाग के बारे में सब बता दिया। अब तो उसकी पत्नी के मन में काफी ज्यादा लालच आ गया। उसने सोचा कि जरूर उस पीपल के पेड़ के नीचे को खजाना है , जहाँ से वह नाग सोने की मुहर लेकर देता है , अगर उस नाग को मार दिया जाये तो पूरा खजाना मिल सकता है । इसलिए ब्राह्मणी ने अपने पति को खाने में नशे की दवा मिला दी, जिससे सुबह को उसकी नींद ही नहीं खुली और उसने अपने जवान बेटे को उठाकर कहा
ब्राह्मण की पत्नी अपने बेटे से कहा "सुनो बेटा, वहां पीपल के पेड़ के नीचे रोज तुम्हारे पिता कथा कहते हैं, जिसे सुनने के बाद एक नाग सांप आकर उन्हें सोने का सिक्का देता है। उस पीपल के पेड़ के जड़ में जरूर कोई खजाना दबा हुआ है। तुम आज तुम वहां जाकर कथा कहो और जब कथा समाप्त होने पर वो सर्प तुम्हें सिक्का देने आए तो उसे मारकर, उस पेड़ के नीचे से पूरा खजाना निकाल कर ले आना।"
बेटे को भी लालच आ गया और वो पोथी पत्रा लेकर उस पीपल के पेड़ के नीचे जा पहुंचा और जाकर कथा कही। जब नाग देवता सिक्का लेकर उसे देने आए तो उसने नाग पर फावड़े से प्रहार कर दिया। जिससे नाग का पूंछ कट गया और वो किसी तरह बचकर वहां से निकल गया। जैसे ही ब्राह्मण के बेटे ने पेड़ के नीचे खोदना शुरू किया ,तो नाग ने पीछे से उस ब्राह्मण के बेटे को डस लिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। इधर जब ब्राह्मण का नशा टूटा तो उसने देखा कि उसका पोथी पत्रा वहां नहीं है। उसे समझ में आ गया कि कुछ तो गलत हुआ है। वो जल्दी-जल्दी से पीपल के पेड़ के पास गया तो अपने बेटे को मृत देख कर दुखी हो गया। अब उसे सारी बात समझ में आ गई थी। उसने अपने बेटे के मृत शरीर का अंतिम संस्कार किया। उसके बाद उसने अपनी पत्नी से कहा
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा "मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई, कि मैंने नाग देवता के मना करने के बावजूद तुमसे ये बात बताई। आज तुम्हारे लालच की वजह से हमारे पुत्र को हमने खो दिया। "
लेकिन उसकी पत्नी को उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ । दूसरे दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा कि। आप जाकर उस नाग देवता को कथा सुनाइए। कम से कम , घर का खर्च तो चलता रहे । पत्नी की बात से विवश होकर वो अपना पोथी पत्रा लेकर फिर उस पीपल के पेड़ के नीचे गया और कथा कही। कथा समाप्त होने पर वो नाग बाहर आया और उसने ब्राह्मण से कहा
नाग ब्राह्मण से क्रोध पूर्वक कहा - "तुम यहां से चले जाओ ब्राह्मण, तुम पुत्र के मृत्यु से दुखी हो तो मैं अपने पूंछ को खोने से दुखी हूं। मैंने तुम्हें पहले ही मना किया था कि ये बात तुम किसी को मत बताना। लेकिन तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया। मैं तुम्हें श्राप देता हुं की जो संपत्ति तुमने मेरे द्वारा अर्जित की वो सारी नष्ट हो जाएगी। "
नाग के श्राप से कुछ दिनों में ब्राह्मण फिर से दरिद्र हो गया । उसने अपनी पत्नी से कहा - आज तुम्हारी लालच की वजह से हम फिर से दरिद्र हो गए हैं। अब उसकी पत्नी को भी अपने किए पर काफी पश्चाताप हुआ । लेकिन होनी को कौन टाल सकता है और बिता हुआ समय वापस नहीं आता।
दोस्तों इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि इंसान को कभी भी ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए, क्योंकि ज्यादा लालच इंसान के लिए घातक साबित हो सकता है।
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