पौराणिक काल से सूर्यदेव को सारी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले देवता माना गया है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। इस लिए ऐसी मान्यता है कि रविवार के दिन सूर्यदेव का व्रत करके उनकी पूजा अर्चना की जाये तो सूर्य देव प्रसन्न होकर मनुष्य के समस्त दुखो का निवारण कर उसे धनवान बना देते हैं ।
रविवार को किये जाने वाले सूर्यदव की व्रत की विधि इस प्रकार है। सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्म करके स्वच्छ वस्त्र पहन ले । ध्यान लगा कर सूर्यदेव की विधि पूर्वक पूजा करें। सूर्य देव को अर्घ दे। दिन में एक समय ही सूर्य का प्रकाश रहते हुए ही बिना नमक का भोजन करे, फलाहार भी सूर्य की रौशनी में ही करे । रविवार का व्रत 12 रविवारों या 30 रविवारों तक करना चाहिए। इस व्रत से शत्रु का भय नहीं होता और साथ साथ समाज में प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। सूर्य देव की क्रिया से दरिद्रता नस्ट होती है। हर सविवार व्रत के समाप्ति सूर्य देवता की कथा सुननी चाहिए जो इस प्रकार है ।
बहुत समय पहले, एक बुढ़िया प्रत्येक रविवार सुबह उठकर , नहा धोकर अपने आंगन को गाय के गोबर से लीपा करती। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ दे कर उनकी की पूजा करती और सूरज भगवन को भोग लगाकर ही खुद भोजन किया करती।
बुढ़िया के पास अपनी खुद की कोई गाय नहीं थी, इसलिये वो पड़ोसन के गाय का गोबर से अपना घर लीपा करती । सूर्य देव की की कृपा से बुढ़िया का घर धन धान्य से भरा रहने लगा। बुढ़िया की सम्पन्नता देख कर उनकी पड़ोसन जलने लगी।पड़ोसन ने द्वेष में आकर विशेषकर रविवार के दिन अपनी गाय को बाहर न रख कर घर के भीतर बांधना शुरु कर दिया। इसी कारण बुढ़िया को गोबर नहीं मिला और वह अपने घर की लिपाई नहीं कर पाई । लिपाई न होने के कारण बुढ़िया ने सूर्य देव की पूजा नहीं की और बिन खाये भूखी ही सो गई। बुढ़िया को सपने में सूर्य देव ने दर्शन दिये और पूछा कि उसने आज अर्घ क्यों नहीं दिया, भोग क्यों नहीं लगाया। बुढ़िया ने कह कि उसके पास अपनी तो कोई गाय नहीं है इसलिए वह अपनी पड़ोसन की गाय के गोबर से लिपाई करती थी। पड़ोसन ने अपनी गाय अपने घर के भीतर बंद दी, इसलिए उसे गोबर नहीं मिला , तो वह घर की लिपाई नहीं कर सकी और लिपाई न होने की वजह से न तो भोजन बना पाई और न ही सूर्य देव को भोग लगा पाई । सूर्य देव ने कहा हे बुढ़िया माई मैं तुम्हारी भक्ति से अति प्रसन्न हूं। मैं तुम्हे एक ऐसी गाय देता हूं जो तुम्हारे सब कष्ट हर लेगी । दूसरे दिन सुबह जब बुढ़िया उठी, तो उसने अपने आंगन में एक सुंदर गाय और बछड़े को बंधा पाया। बुढ़िया बड़ी श्रद्धा से उस गाय बछड़े की सेवा करने लगी।
जब पड़ोसन ने बुढ़िया के आँगन में गाय देखी तो वह और भी जलने लगी। पड़ोसन ने देखा की बुढ़िया कि गाय सोने का गोबर कर रही है। बुढिया वहां पर नहीं थी। पड़ोसन ने अपनी गाय का गोबर रख कर , सोने के गोबर को उठा कर अपने घर ले गई। बुढ़िया की गाय रोज सूरज उगने से पहले सोने का गोबर करती और पड़ोसन उठा कर अपने गे के गोबर से बदल देती। देखते ही देखते पड़ोसन बहुत अधिक अमीर होती हो गई। बुढ़िया को यह पता ही नहीं चला कि सूर्य देव के द्वारा दी गयी गाय सोने का गोबर देती है। । अब सूर्य देव ने विचार किया की किसी प्रकार बुढ़िया को यह बात बतानी पड़ेगी । उन्होंने शाम को बहुत तेज आंधी चलवा दी, आंधी के कारण बुढिया ने अपनी गाय को घर के अंदर बांध दिया। सुबह जब बुढ़िया उठी तो देखा कि गाय तो सोने का गोबर करती है। अब वह हर रोज अपनी गाय को घर के अंदर बांधने लगी।
अब पड़ोसन को गोबर मिलना बंद हो गया तो उससे रहा नहीं गया। उसने राजा को बताया कि बुढ़िया के पास ऐसी गाय है जो सोने का गोबर करती है । राजा को पड़ोसन की बात पर विस्वास नहीं हुआ,लेकिन पड़ोसन के बार बार कहने पर राजा ने चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं। राजा ने सैनिक भेजकर बुढ़िया की गाय को राजमहल लाने का हुक्म दिया। सैनिक जाकर बुढ़िया की गाय को ले आये। देखते ही देखते बुढ़िया की गाय ने सारे महल को गोबर करके भर दिया , हर जगह बदबू ही बदबू फैल गई। सब लोग गोबर की गंध से परेशान हो गए। रात को सूर्य देव राजा को सपने में आये और कहा कि हे मूर्ख राजा , यह गाय मैंने उस बुढ़िया को दी है जो वह हर रविवार नियम पूर्वक मेरा व्रत करती है। इस गाय को बुढ़िया को लौटा देने में ही तुम्हारा भला है । राजा की आँख खुल गयी। उसने सैनिक को भेज कर बुढ़िया को बुलाया और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी और बहुत सारा धन देकर सम्मान पूर्वक बुढ़िया की गाय लौटा दी । राजा ने पड़ोसन को उसके अपराध के लिए दंड दिया और साथ ही अपने राज्य में घोषणा करवाई की आज से सारी प्रजा रविवार के दिन व्रत करेगी और सूर्य देव की आराधना करेगी। रविवार के व्रत करने से उसका राज्य भी धन्य धान्य से भर गया और प्रजा में सुख शांति रहने लगी।
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