भक्त ध्रुव की कहानी

दोस्तों  रात को आसमान पर उत्तर दिशा में एक तारा चमकता ,  जिसे ध्रुव तारा कहा जाता है । इस तारे का नाम भक्त ध्रुव के नाम पर ही रखा गया है जो की भगवान विष्णु के परम थे  । आज हम आपको  भक्त ध्रुव की भक्ति भरी कहानी  सुनाने जा रहे हैं। 

भक्त ध्रुव की कहानी

बहुत  समय पहले की बात है उत्तानपाद नाम के एक महँ  राजा थे, जो बहुत ही प्रजापालक   थे। उनकी दो पत्नियां थी, जिसमे बड़ी पत्नी का नाम सुनीति और छोटी  का नाम सुरुचि था। दोनों पत्नियों के एक-एक पुत्र थे। सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम था। उम्र में ध्रुव उत्तम से बड़ा था,   राजा उत्तानपाद को अपनी छोटी पत्नी सुरुचि  अधिक प्रिय थी , जिसकी वजह से वो सुरुचि की किसी भी बात को  नहीं काटते थे  । उन्होंने रानी  सुनीति के सारे अधिकार छोटी रानी  सुरुची को दे दिए।  सुनीति काफी दुखी रहती थीं। और  सुरुचि को काफी  घमंड हो गया था । उसने मन ही मन ये भी ठान लिया था, कि उसका पुत्र उत्तम ही  राजा उत्तानपाद का उत्तरधिकारी होगा । एक दिन राजा उत्तानपाद बाहर से अपने राज महल लौटे, तो निति नियम  के अनुसार उनका स्वागत उनकी बड़ी रानी सुनीति को करना चाहिए था, लेकिन उनका स्वागत करने के लिए सुरुची ही गई। इस पर राजा उत्तानपाद के राज गुरु ने कहा -  रानी सुरुची, आप ऐसा कदापि नहीं कर सकतीं। 

तब राजा उत्तानपाद बोले  - इसमें ऐसा क्या घटित हो गया गुरुजी। जो आप इसका विरोध रहे हैं।

राज गुरु ने उत्तर दिया   - किसी भी राजा के स्वागत करने का पहला अधिकार बड़ी रानी  का होता है। चुकी आप प्रजापालक हैं, तो आपका ये धर्म बनता है कि बड़ी राजी को उनका अधिकार दे और आप सारे धर्मों का निष्ठापूर्वक पालन करें। तब रानी सुरुचि ने कहा  -  महाराजा ने बड़ी रानी के सारे अधिकार मुझे दे रखे हैं। अगर राजा मना करेंगे  कि मैं उनका स्वागत ना करूं तो मैं नहीं करुंगी।

राजा उत्तानपाद बोले - मैं ये अधिकार अपनी छोटी रानी सुरुचि को  देता हूं  । रानी सुरुचि  ही मेरा स्वागत करें।  अब सुनीति काफी दुखी रहने लगी , एक दिन  ध्रुव दौड़ते हुए अपनी मां के पास आया  और बोला ।  मां पिताजी को महल में वापस लौटे हुए काफी देर हो चुके हैं, लेकिन वो अब तक यहाँ  नहीं आए।सुनीति ने कहा  वो तो छोटी मां के कक्ष में होंगे पुत्र ।

ध्रुव ने  पिता से मिलने की जिद की लेकिन माँ सुनीति ने उसे जाने से मन किया। 

बालक ध्रुव हठ कर दौड़ता हुआ राजा उत्तानपाद के पास चला जाता है और  कहता है - पिताजी आप आ गए। आप मुझसे मिलने नहीं आए। इसलिए मैं ही आपके पास आ गया। पिताजी मुझे आपकी गोद में बैठना है। उत्तानपाद ने उसे अपनी गोद में बैठा लिया। 

अपने पिता के गोद में ध्रुव अभी बैठा ही था कि सुरुची गुस्से से कांप उठी और ध्रुव को राजा की गोद से खींचकर धक्का दिया , और ध्रुव नीचे फर्श पर जा गिरा। और  रोने लगा और बोला - मां आप मेरे साथ ऐसा क्यों कर रही हो।   मुझे पिता महाराज के गोद में बैठने का पूरा अधिकार है। 

सुरुचि ने कहा की   तुम्हारा महाराज पर कोई अधिकार नहीं है। ना तो तुम उनके गोद में बैठ सकते हो और ना ही राजगद्दी पर। अगर तुम्हें ये सारे अधिकार चाहिए, तो जाकर तपस्या करो और भगवान से कहो कि वो तुम्हें अगले जन्म में मेरी कोख से पैदा करे 

 ये अपमान सहकर ध्रुव रोता हुआ अपनी मां के पास गया और उनसे सारी बात बताई , जिसे सुनकर सुनीति की आंखों से आंसू आ गए और वो बोली  - पुत्र   इसलिए मैं तुम्हें वहां जाने से मना किया था ,  फिर भी तुम वह चले गए। मैं तुम्हें इस तरह दुखी नहीं देख सकती। 

ध्रुव ने पूछा - मां मुझे पिताजी का प्यार कैसे मिलेगा। 

सुनीति ने कहा -  भगवान सब अच्छा करेंगे। वो चाहें तो कुछ भी हो सकता है। 

ध्रुव बोलै  -  मां, मैं भगवान को मनाने के लिए जाता हूं ताकि वो मुझे मेरे पिता का प्यार लौटा सके। 

ध्रुव रोते हुए जंगल की ओर चला गया , तो रास्ते में उसे नारद मुनि मिले  ह। उन्होंने ध्रुव को समझाया  -  पुत्र तुम अपने घर वापस लौट जाओ। क्योंकि तुम जिस राह पर चलने की प्रतिज्ञा कर रहे हो, वो बहुत कठिन है। ध्रुव ने कहा  -   नहीं देवश्रृषि। मैं अपने पिता के प्यार को पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं। 

तब नारद जी ने भक्त ध्रुव को   "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र बताया और कहा की तुम इस मंत्र का जाप करो। भगवान तुम्हारी अवश्य सुनेंगे। 

ध्रुव एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठकर भगवान विष्णु की तपस्या में लीन हो गया। इधर उत्तानपाद को अपने किए पर काफी पश्चाताप हो रहा था। उधर आंधी आई, तूफान आई, लेकिन हर चीज से बेफिक्र ध्रुव मंत्र का जाप करता रहा। ध्रुव की घोर तपस्या से भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने ध्रुव को दर्शन देते हुए कहा।  आंखे खोलो पुत्र ध्रुव । मैं तुम्हारी इच्छा और  मन की  व्यथा दोनों को समझता हूं। तुम्हारी सारी इच्छा पूरी होगी पूत्र। तुम्हें मैं ऐसा लोक प्रदान करता हूँ जो चंद्र, सूर्य आदि ग्रहों, सप्तर्षियों और सभी नक्षत्रों से भी ऊपर है। तुम युगों युगों तक ध्रुव तारा के नाम से जाने जाओगे। 

जो लोग भी संध्याकाल और प्रात:काल में तेरा गुणगान करेंगे उन्हें पुण्य की प्राप्ति होगी। उस स्थान पर तुम्हारी माता सुनीति भी तुम्हारे साथ निवास करेंगी। अब तुम अपने महल लौट जाओ। वहां सब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। अपने सारे कर्तव्यों का अच्छे से निर्वाह करो।   ऐसा कहकर भगवान विष्णु वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं और ध्रुव अपने महल लौट जाता है, जहां सभी उसे पाकर काफी खुश हो जाते हैं। सुरुचि को भी अपनी गलती का एहसास हो चुका था। 

 दोस्तों उम्मीद है आपको ध्रुव की कहानी पसंद आई होगी। हमें ध्रुव की कहानी से क्या शिक्षा लेनी चाहिए कमेंट कर जरूर बताएं। 

 

 

 


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